सरकार ने लॉकडाउन लगाकर बिहार में कोरोना के संक्रमण को भले ही आगे बढ़ने से रोक दिया है। लेकिन अभी भी स्वास्थ्य के क्षेत्र में जो ढांचागत विकास होना चाहिए था, वह नहीं हो सका है। सबसे बड़ी बात है कि विभाग द्वारा कई गांव में अस्पताल के लिए भवन तो बना कर दिया गया, लेकिन उन भवनों का कभी अस्पताल के तौर पर उपयोग नहीं हो सका।
बिहार के केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री अश्वनी कुमार चौबे के संसदीय क्षेत्र बक्सर के रोहतास जिला के सूर्यपुरा प्रखंड के कोसांदा गांव में स्थित अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की की हालत भी कुछ ऐसी है कि पिछले 35 सालों से यह प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बंद पड़ा है।

कोसांदा गांव का अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के भवन का निर्माण आज से साढ़े तीन दशक पूर्व हुआ था. अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के भवन का निर्माण से लोगों में ये उम्मीद जगी थी कि अब उनके गांव में ही उनका अच्छा इलाज हो सकेगा. लेकिन लोगों की आंखें पथरा गई पर आज तक उस भवन में कोई डॉक्टर बैठने तक नहीं आया.
आलम यह है कि अब इस भवन का उपयोग ग्रामीणों के द्वारा मवेशियों का भूसा रखने के किये किया जाता है. कई ग्रामीण अब इस अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के भवन में अपने मवेशी को ही बांध देते हैं. हम यह कह सकते हैं कि बिना उपयोग किए ही यह भवन परित्यक्त हो गया है. बड़ी बात यह है कि जब केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री के इलाके में स्वास्थ्य की यह दुर्दशा हो सकती है तो अन्य जगहों की क्या बात कहि जाए.

गांव के लोगों की माने तो उन्हें इलाज हेतु बिक्रमगंज अथवा भोजपुर के ‘आरा’ जाना पड़ता है. क्योंकि गांव में कोई भी इलाज की व्यवस्था उपलब्ध नहीं है. कोरोना के विकट समय में भी यहां कोई सुविधा उपलब्ध नहीं थी, ऐसे में जो भी लोग बीमार हुए उन्हें बिक्रमगंज, सासाराम अथवा आरा जाकर अपना उपचार करवाना पड़ा. ग्रामीणों का कहना है कि यह इलाका स्वास्थ राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे के साथ साथ जदयू नेता जय कुमार सिंह का भी है जोकि कई बार जीत कर मंत्री बने है, किंतु इस छेत्र के अस्पताल की यह दुर्दशा है.
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इस संबंध में सूर्यपुरा प्रखंड के प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी डॉ शशिकांत शेखर ने बताया कि भवन का जब निर्माण हुआ था। उसी समय भवन निर्माण विभाग ने इसे स्वास्थ विभाग को सौंपा ही नहीं। जिस कारण इसका उपयोग नहीं हो सका.
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